महाराणा प्रताप भाग-13
“द्रढ़ इरादे वाले लोगों और राष्ट्रों को कोई बड़ी से बड़ी शक्ति भी पराधीन नहीं रख सकती |” राजगुरु ने कहा — “इस पवित्र ललकार को सुनने के लिए मेरे कान जाने कब से व्याकुल हो रहे थे, प्रताप!””शत्रुओं द्वारा मात्रभूमि के किये गए अपमान का बदला गिन-गिनकर तलवार की नोक से लिए जायेगा | चप्पा चप्पा भूमि की रक्षा के लिए यदि खून की नदियाँ भी बहानी पड़ी, तो मेरे मुख से कभी उफ़ तक न निकलेगा | आप लोगों ने मुझे जो स्नेह और विश्वास प्रदान किया है, प्रताप दम में दम रहते उस पर रत्ती-भर भी आंच न आने देगा ! जय स्वदेश! जय मात्रभूमि ! जय मेवाड़ ! ”
उसके बाद सभी उपस्थित सरदारों, सामंतों और दरबारियों ने मात्रभूमि की स्वतंत्रता और रक्षा के प्रति निष्ठावान रहने की शपथ ली | अपने नए महाराणा प्रताप का अभिवादन किया | तभी गाते-गाते एक चारणी ने प्रवेश किया—
“जागा है मेवाड़,
उदय की बेला आई है !
तरुण- तपस्वी राज-ऋषि ने,
मात्रभूमि की गौरव-श्री ने,
थामी फिर तलवार,
जगी सोई तरुणाई है !
उदय की बेला आई है!”
“देश के गौरव का ज्ञान करने वाली चारणी का स्वागत हो |” महाराणा प्रताप ने कहा— “गाओ, गाओ चारणी, ऐसा जोश भरा गीत कि सारा देश अंगड़ाई लेकर उठ खड़ा हो ! मेरा सन्देश घर-घर पहुंचा दो चारिणी ! कह दो जाकर देश वासियों से, कि उनके राणा ने नहीं, बल्कि मात्रभूमि के सेवक ने प्रतिज्ञा की है कि वह मात्रभूमि के चप्पे-चप्पे से शत्रुओं को खदेड़े बिना चैन की सांस नहीं लेगा ! गाओ ! नस-नस में बिजली का संचार लार देने वाला गीत गाओ !”
“महाराणा की जय !” चारणी ने कहा–“महाराणा की आज्ञा शिरोधार्य कर मै मेवाड़ के हर गाँव में घूम जाउंगी ! महाराणा का सन्देश गाँव-गाँव में पहुँच जायेगा | जय महाराणा! जय स्वदेश!”
और फिर —“जागा है मेवाड़”—गाते -गाते चारणी चली गई | प्रताप ने एक और बंदी के रूप में खड़े अकबर के व्यक्तियों को देखकर पूछा–
“ये लोग कौन है ?”
“ये अकबर के गुप्तचर है | यही वह संधि-पत्र लेकर आये थे | अब इनके लिए क्या आज्ञा है महाराणा ?” मंत्री ने आदर पूर्वक झुकते हुए पूछा |
“इन्हें छोड़ दिया जाय, ताकि ये लोग अपने आका (मालिक अकबर) के पास जाकर हमारी प्रतिज्ञा सुना सके |”
प्रताप की आज्ञा से दोनों को छोड़ दिया गया | नर्तकियों को भी राज-दरबार से सदा के लिए विदा कर दिया गया | प्रताप राजसिंहासन पर केवल उस दिन के लिए बैठे | उसके बाद काफी देर तक देश की राजनीती के बारे में चर्चा होती रही | अंत में प्रताप ने कहा—
“हमें जल्दी ही अपना संघर्ष आरम्भ कर देना है | बसंत ऋतू आरम्भ हो चुकी है | कई वर्षों से बंद अहेरिया (शिकार खेलने का) उत्सव इस बार धूम-धाम से मनाया जाय, ताकि शिकार के बहाने हम लोगों की सोई प्रतिहिंसा की भावना और उत्साह जाग उठे |”
“जो आज्ञा, महाराणा !” महामंत्री ने कहा |
उसके बाद सभा समाप्त हो गई|
One Response
Geez, that’s unibaeevlble. Kudos and such.