महाराणा प्रताप भाग-23
“यह भी कर देखिये, राजा साहब !” अकबर ने कहा — “पर अब अधिक देर नहीं होनी चहिये ।” अकबर ने फिर राजा भगवानदास की तरफ देखते हुए कहा — “हम नहीं चाहते की प्रताप जैसा महत्वपूर्ण व्यक्ति हठ करके युद्ध की भेंट हो जाय ! आप अभी-अभी रिश्ते की बात कर रहे थे न, मैं चाहता हूँ कि आप भी एक बार जल्दी उससे भेंट करने का प्रयत्न कीजिये । कहीं ऐसा न हो, कि पानी सिर से उतर जाय, और हम लोग देखते ही रह जाएँ !”
“बहुत अच्छा, सम्राट !” राजा भगवानदास ने उठते हुए कहा — “मैं आज ही मेवाड़ जाकर प्रताप से मिलने का प्रयत्न हूँ । देखें क्या परिणाम निकलता है ।”
“मुझे भी तो राजस्व आदि की व्यवस्था के लिए एक बार दिल्ली की तरफ जाना पड़ेगा, सम्राट !” राजा टोडरमल ने उठते हुए कहा —“मैं भी चाहता हूँ कि जाती या आती बार मेवाड़-प्रदेश से गुजरूँ और राणा प्रताप से मिलकर सुलह-सन्धि का प्रयत्न एक बार कर देखूँ !”
“ठीक है !” अकबर बोला — “आप भी प्रयत्न कर देखिये । पर यह सब बहुत जल्दी हो जाना चाहिए ।” फिर सम्राट महावत खां की तरफ मुड़े –“सिपहसालार (सेनापति) महावत खां, तुम्हारी सेनाएं हर समय तैयार रहनी चाहिए । उनमे किसी भी प्रकार की सुस्ती नहीं आनी चाहिए ।”
“जो आज्ञा, जहाँपनाह !” सलाम करके महावत खां चला गया । उसके बाद शाहबाज खां ने झुकते हुए कहा —
“मेरे लिए क्या हुक्म है, जहाँपनाह ?”
“तुम फौज की एक टुकड़ी लेकर मेवाड़ चले जाओ । चित्तौडगढ़ जाकर राणा सागरसिंह की सहायता से प्रताप का लगातार पीछा करो । उसे कहीं भी चैन से न बैठने दो । उसकी सभी गति-विधियों पर नज़र रखो ।”
“जो हुक्म, हुजूर !”
शाहबाज़ खां भी नमस्कार करके चला गया ।
“आप लोग भी आज ही अपनी यात्रायें शुरू कर दीजिये ।”
अकबर ने सामने खड़े तीनों राजाओं की तरफ देखते हुए कहा ।
वे तीनों भी झुककर चले गए ।
अकेला अकबर वहीँ बैठा जाने किस बात में खो गया । कई क्षण बीत गए । वह होंठों ही होंठों में बुदबुदाया —
“प्रताप—हूँ—प्रताप ! प्रताप हो गया, कोई हौआ हो गया । ”
तभी शाहजादा सलीम (जहाँगीर) ने प्रवेश किया और एकाएक कहा —
“अब्बाजान !”
अकबर कुछ नहीं बोला, जैसे कुछ सुना ही न हो ।
सलीम ने फिर पुकारा –“अब्बा हुजूर !”
“ओह ! शाहज़ादे !” अकबर ने उठते हुए कहा –“तुम कब आये ?” और फिर उसके कन्धों पर हाथ रखते हुए कहा —“चलो, चले ! हम कुछ आराम करना चाहते है !”
और वे चले गए !
One Response
Keep it coming, wrsiert, this is good stuff.