महाराणा प्रताप भाग-25

महाराणा प्रताप भाग-25

खाना खाने के बाद वे अपनी बड़ी झोंपड़ी के सामने पड़े चौड़े-चपटे पत्थर पर आ बैठे। इधर-उधर बैठे या घूमते हुए राजपूत सैनिकों ने आकर उन्हें घेर लिया। वे लोग भी आस-पास छोटे-छोटे पत्थरों के टुकड़ों पर बैठ गए।

“आप लोगों का युद्ध-अभ्यास कैसा चल रहा है?” महाराणा प्रताप ने चारों तरफ देखते हुए कहा।

“अब हम बिलकुल तैयार हैं, महाराणा !” एक सैनिक ने कहा –“अब तो एक बार कहीं जोरदार हमला हो जाय!”

“हम जल्दी ही चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण करने की योजना बना रहे हैं। उसका उद्धार बहुत आवश्यक हैं। उसके बाद उदयपुर के उद्धार की योजना हैं।” वे रुके और एक सैनिक सरदार की तरफ देखते हुए पूछा –“कहिये, आपके प्रदेश की क्या स्थिति हैं?”



“हमारे सभी साथी आपके आदेश की प्रतीक्षा कर रहे हैं, महाराणा ! आपका आदेश पते ही भीमगढ़ का प्रत्येक भूमिया और वंशी किसान हल-बक्खर छोड़कर तलवार संभाल लेगा। शत्रुओं को नाकों चने चबाने के लिए सभी उत्सुक हैं।”

“तो मेवाड़ जाग रहा हैं !” महाराणा बोले – “वह स्वाधीनता का अर्थ समझ रहा हैं ! जिस देश का नागरिक स्वाधीनता का वास्तविक अर्थ समझ लेता हैं, उसे कोई भी शक्ति पराधीन नहीं रख सकती।”

तभी भागते हुए एक सैनिक ने प्रवेश किया। आते ही उसने महाराणा को प्रणाम करते हुए कहा —

“मुगलों की एक बढ़ी टुकड़ी अकबर के एक सेनापति आसफ खां के नेतृत्व में इस जंगल के दक्षिण की ओर बढ़ रही हैं, महाराणा ! सूर्यमहल दुर्ग के राठौर नायक तेजसिंह ने पूछा हैं, उसके साथ कैसा व्यव्हार किया जाय।”

“हूँ: !” महाराणा ने तनिक गंभीर होते हुए उत्तर दिया — “उसे यह पता चलना ही चाहिए, की अब या प्रदेश उनका नहीं रह गया। सेनाएं लेकर यदि किसी दूसरे देश की सीमा से गुजरना हो, तो उसके लिए उचित आज्ञा लेनी पड़ती हैं।”

“तो राठौर नायक तेजसिंह से क्या कह दूँ, महाराणा ?” दूत ने फिर पूछा।

“कह दो की शत्रु के साथ शत्रुओं जैसा ही व्यव्हार करना राजनीती और रणनीति हैं।” राणा ने फिर कहा –“आस-पास के समस्त किलेदारों से कह दो की इस प्रकार की स्थिति में उन्हें उचित कार्यवाही का निर्णय स्वयं कर लेना चाहिए। कोई विशेष घटना घटने पर ही हमें सुचना देने की आवश्यकता हैं। शत्रुओं को हर कदम पर यह पता चल जाना चाहिए, कि मातृभूमि मेवाड़ को रोंदते हुए वे अब पहले के समान नहीं गुजर सकते।”

“जो आज्ञा, महाराणा !” और वह दूत प्रणाम करके चला गया।

अभी वह गया ही था कि एक अन्य दूत ने प्रवेश किया।

“कहाँ से आ रहे हो, दूत ?”

“मुझे सालुम्बरा के राजा चंदावत कुलश्रेष्ठ कृष्णसिंह जी ने भेजा हैं, महाराणा !”

“क्या सन्देश हैं उनका ?” महाराणा ने प्रश्न किया।

“आजकल अकबर के राजस्व विभाग के अध्यक्ष राजा टोडरमल उनके यहाँ अतिथि बने हुए हैं, महाराणा ! राजा टोडरमल आपसे मिलना चाहते हैं। चंदावत राजा उन्हें साथ लेकर यहीं आ रहे हैं। मुझे श्रीमान को सुचना देने भेजा गया हैं।”

“ठीक हैं।” महाराणा ने कहा वह गंभीर हो गए। उसके बाद उन्होंने अपने बेटे अमर सिंह को बुलवाया। उसके आ जाने पर राणा ने समझाते हुए कहा–“देखो, अमर बेटे ! चंदावत कृष्णसिंह के साथ राजा टोडरमल आ रहे हैं। तुम इसी समय कमलमीर चले जाओ ! वहीँ दुर्ग में उनके स्वागत कि व्यवस्था करो। हम भी ठीक समय पर उनसे मिलने वहीँ पहुँच जायेंगे।”

“जो आज्ञा, पिताश्री !”

और अमर सिंह कुछ सैनिकों को साथ लेकर उसी समय कमलमीर के दुर्ग की तरफ चल दिया। दुर्ग वहां से अधिक दूर नहीं था। जाते ही उसने वहां स्वागत-सत्कार की सारी व्यवस्था कर दी।

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