महाराणा प्रताप भाग-6
“अरे अभी आगे-आगे देखना क्या होता है !” पहले ने फिर से कहा –“मेवाड़ तो अब नाममात्र का मेवाड़ रह गया है | एक-एक करके सारे इलाके छिन गये है | सुना है, उदयपुर पर भी अकबर का अधिकार हो गया है |”
“होता क्यूँ ना ! उस भटियानी के बेटे यागमल को अपने तन की सुध हो, तब न | हमेशा तो शराब के नशे में धुत रहा करता है |” एक अन्य ने कहा —“कुम्भलगढ़ का राज-दरबार, जहाँ राजपूतों की तलवारों की झंकार सुनाई दिया करती थी, जहाँ देश की राजनीति पर निर्णय किये जाया करते थे, जहाँ वीर राजपूतों की शत्रुओं को ललकारने की आवाज सुनाई दिया करती थी, वहां आज तबले की थापें, शराब के प्यालों की खनक, घुंघरुओं की झनक और वेश्याओं के नखरों की आवाज गूंज रही है | इससे ज्यादा देश का दुर्भाग्य क्या हो सकता है ?”
“यही हालत चित्तौडगढ़ में उस तथाकथित राणा सागरसिंह की हो रही है |” तीसरा बोला–“चित्तौडगढ़ की वह पवित्र भूमि, जिसे हमारे कुम्भा, सांगा जैसे वीर राणाओं ने अपने वीरता के कार्यों से सम्मानित किया, आज इस देशद्रोही नीच सागरसिंह के कारण व्यभिचार का अड्डा बन गया है |जहाँ रानी पद्मावती और कर्मवती जैसी वीरांगनाओं ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर की ज्वाला जलाई थी, आज उनके मान-सम्मान की राख को विलासियों की अपवित्र थिरकन रोंद रही है |”
“इधर सिसोदिया वंश को कलंकित करने वाला सागरसिंह, उधर भटियानी रानी की विलासिता का जीता-जागता नमूना यागमल — इन दोनों की विलास-वासनाओं के बीच मेवाड़ की प्रजा पिस रही है | उधर अकबर के लुटेरे सैनिकों का दबाव ऊपर से बढ़ता जा रहा है | अब तो भगवान् ही मालिक है हम लोगों का |”
“पर बड़े कुमार प्रतापसिंह क्या कर रहे है ?” किसी ने आगे बढ़ते हुए कहा –“उनका चरित्र और व्यवहार तो गंगाजल के समान पवित्र है | क्या वे हम लोगों के लिए कुछ भी नहीं कर सकते ?”
“उनके पास अधिकार ही कौन-सा रहने दिया गया है ?” दुसरे ने कहा —“विलासी राणा उदयसिंह ने बुढ़ापे में विवाह किया | विवाह से पहले उन्होंने भटियानी रानी के माँ-बाप से वचन दिया था, कि मेवाड़ का राणा उसी के गर्भ से जन्म लेने वाला बालक ही बनेगा|सो महाराजकुमार प्रताप के अधिकार यागमल के पास है | राजा के दुष्कर्म का फल हम प्रजा-जनों को भोगना पड़ रहा है | बेचारे प्रताप कर ही क्या सकते है !”
“इतने पर भी वे बहुत कुछ कर सकते है| उस दिन जंगल में एक भील कन्या को अकबर के कुछ सैनिकों ने घेर लिया था | प्रताप उधर से शिकार खेलकर आ रहे थे | भील-कन्या की पुकार सुनकर वे झट से वहां जा पहुंचे | दस-बारह मुग़ल सैनिकों से अकेले ही भीड़ गए | उन्हें मारकर भील-कन्या की लाज और जान बचाई |” एक ग्रामीण ने कहा |
“अरे उस दिन, चित्तौडगढ़ के सागरसिंह के सैनिक हमारी फसल काटने को चढ़ आये| तब भी प्रताप न पहुँच जाते, तो शायद हमें वर्ष-भर भुंखों मरना पड़ता |”
इस प्रकार की बातें लोगों में हो रही थी | तभी घोड़ों की टापें सुनाई दी | सभी व्यक्ति चोकन्ने हो गए | उन्होंने एक तरफ देखा | सामने के चार-पांच घुड़सवार चले आ रहे थे | सभी को भय हुआ कि कहीं सागरसिंह के सैनिक न हो, क्यों कि इलाका उसी का पड़ता था | अत: सब चुपचाप सहमे-से खड़े हो गए |
घुड़सवार निडर भाव से उन्ही कि ओर बढे आ रहे थे |
“अरे ! यह तो महाराजकुमार प्रताप लगते है |” भीड़ में से कोई चिल्लाया |
“हाँ-हाँ !” दुसरे ने ध्यान के देखते हुए कहा —“प्रताप ही है | उनके साथ झाला सरदार मन्नाजी ओर छोटे कुमार शक्तिसिंह भी है |”
तब तक वे लोग पास आ गए थे |
“राजकुमार प्रताप की—“कोई चिल्लाया |
“जय!” सभी ने एक साथ कहा |
प्रताप ने हाथ उठाकर उनका अभिवादन किया | देखते ही देखते भीड़ ने उन्हें घेर लिया| प्रताप ने शांत ओर गंभीर वाणी में कहा —
“शिकार करके लौट रहा था | सोचा, आप भाइयों से मिलता चलूँ | कहिये, आप लोग कुशलपूर्वक तो है न ?”
“कुशल ! अह: ह: ह: ह: !” एक व्यक्ति ने खिलखिलाकर हंसते हुए कहा —“जब राजा लोग आनंद-मौज ओर शिकार के खेलों में मग्न है, तो प्रजा तो कुशलपूर्वक होगी ही, राजकुमार!”
प्रताप ने फटी-फटी आँखों से कहने वाले की तरफ देखा | कहने वाला व्यक्ति वृद्ध था |
“आप मेरे पिता तुल्य है |” प्रताप ने धीरे के कहा —“कही मुझसे कोई भूल तो नहीं हो गई, जो आप इतनी व्यंग्य-भरी वाणी में बोल रहे है ?”
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