महाराणा प्रताप भाग-5

महाराणा प्रताप भाग-5

“मेवाड़ राज्य, जो विदेशियों के आक्रमणों के कारण कटता-छंटता पहले ही बहुत छोटा रह गया है, कुंवर यागमल जैसे विलासी के राणा बनते ही वह पूर्णतया अकबर की गोद में चला जायेगा |” राजगुरु ने फिर कहा|
“राजगुरु | उदयसिंह ने कहा —” आप धर्म और शिक्षा के गुरु है, राजनीती के नहीं | आपकी भी एक मर्यादा होनी चाहिए | हमारा निर्णय अटल है|”
राज-दरबार में सन्नाटा छा गया |
“राजपूत सरदारों और सामंतों !” कुछ देर बाद मौन को तोड़ते हुए महामंत्री ने कहा –“महाराणा का स्वस्थ्य अच्छा नहीं है| कई बार कुछ निर्णय इच्छा के विरुद्ध भी स्वीकार करने पड़ जाया करते है| मेरा निवेदन है की आप लोगों को महाराणा के निर्णय के विरुद्ध शिकायत नहीं होनी चाहिए|”
“शिकायत ! क्यों नहीं होनी चाहिए, शिकायत ?” अनेक स्वर एक साथ सुनाई दिए– “यदि महाराणा का यही निर्णय है, तो फिर हम लोगों का यहाँ क्या काम ?” इतना कहकर अनेक सरदार उठकर बहार चले गए | जाने वालों में झालौर राव चंदावल कृष्ण आदि प्रमुख थे |
उनके जाते ही दरबार समाप्त कर दिया गया|
एक, दो, तीन— कई वर्ष बीत गए|



प्रताप जवान हो गए थे | उनका विवाह भी हो गया| सागरसिंह और शक्तिसिंह भी ब्याहे गए ! उनके यहाँ संताने भी उत्पन्न हो गई |
प्रताप का जीवन शांत ढंग से काटने लगा | अपनी सीमा और शक्ति में वह प्रत्येक की सहायता करते | इस कारण उनकी लोकप्रियता लोगों में बढती ही गई | कुंवर सागरसिंह का जीवन पहले से कहीं अधिक विलासिता में व्यतीत होने लगा| कुंवर शक्तिसिंह के साथ प्रताप अपने बेटे अमरसिंह के सामान ही स्नेह का व्यवहार करते| वे राज्य की व्यवस्था में शक्ति भर हाथ बंटाते |

एक दिन राणा उदयसिंह ने सदा के लिए आँखें मूंद ली |

“अब मेवाड़ में रह सकना संभव नहीं|”
“रोज-रोज अपमानित होकर हम मेवाड़ में रह भी कैसे सकते है ! कदम-कदम पर हमें अपमान सहना पड़ रहा है|”
“जब रक्षक ही भक्षक बन जाये, तो यही सब कुछ हुआ करता है, भाइयों |”
चितौडगढ़ से थोड़ी ही दूर पर बसे एक गाँव का चौराहा |
वहां काफी लोग एकत्रित थे| सभी के चेहरे डरे-डरे से प्रतीत होते थे | उनमे उत्तेजना और जोश का भाव भी था | सभी जैसे कुछ कर गुजरने पर तुले हुए थे |
“इस देशद्रोही सागरसिंह का अत्याचार तो प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है| अब तो बहु-बेटियों की इज्जत भी यहाँ सुरक्षित नहीं|” एक ग्रामीण ने गुस्से में कहा |
“देशद्रोही सागरसिंह अकबर के साथ जा मिला है | अकबर ने उसे चितौडगढ़ का किला सौंप दिया है और उसे सारे मेवाड़ का राणा भी घोषित कर दिया है | उसी सी शह पाकर ही तो चितौडगढ़ में रहने वाले ये विदेशी सैनिक मनमानी करने लगे है |” दुसरे ग्रामीण ने कहा |
“जिसका जी चाहता है, चुपचाप आकर हमारी फसलों को काट ले जाता है |” तीसरा बोला |
“बाग़-बगीचे इन्होने उजाड़ दिए है | हमारे ढोर पकड़-पकड़ कर ये लोग खा गए है | आखिर हम निहत्थे और लाचार प्रजा के लोग फ़रियाद भी किससे करें? चौथा बोला |
” जिन्हें कुछ करना चाहिए, वे राग-रंग , शराब और नर्तकियों के घुंघरुओं की रन-झुन में उलझे हुए है| हमारी फ़रियाद सुनने वाला अब रह ही कौन गया है ! मेवाड़ के सिसोदिया वंश के राणा-परिवार की ऐसी दुर्गति कभी नहीं हुई | पहले राणा कुछ भी थे, कम से कम हमारी इज्जत पर तो कोई हाथ न डालता था|”

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3 Responses

  1. RAHUL says:

    Apratim…

  2. Silvia says:

    I can already tell that’s gonna be super heplluf.

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