महाराणा प्रताप भाग-9

महाराणा प्रताप भाग-9

गोगुन्दा में यागमल का राज-दरबार !

राणाओं की पगड़ी पहने और तलवार लटकाए यागमल राज-सिंहासन पर बैठा था। उसके कुछ खुशामदी और विलासी मित्र तथा दरबारी भी वहां उपस्थित थे। एक-दो विदेशी पगड़ियाँ भी नजर आ रही थी । विदेशी पगड़ीधारी व्यक्ति शायद अकबर के दूत थे, जो यागमल को अपने पक्ष में मिलाने के लिए आये थे।

यागमल की आँखें चढ़ी हुई थी। वह शराब के नशे में धुत था। राज-सिंहासन पर बैठा वह नशे में झूम रहा था। उसके आसपास दो-तीन नर्तकियों जैसी देखने वाली युवतियां शराब की सुराहियाँ लिए खड़ी थी। कभी कोई शराब का प्याला यागमल के मुह से लगा देती और कभी कोई। यागमल की हिचकियाँ बंध रही थी। आँखें बहार की तरफ निकली आ रही थी, वह पीता ही जा रहा था।

छुम छन न न न !

सहसा घुंघरुओं की आवाज गूंजी। नर्तकियों का एक दल नृत्य करता हुआ प्रविष्ट हुआ। नर्तकियों के घुंघरुओं की ताल के साथ साथ यागमल भी तालियाँ बजा-बजाकर ताल मिलाने लगा। जैसे-जैसे नृत्य का जोर बढता जा रहा था, वैसे-वैसे यागमल की मस्ती और झूम भी बढती जा रही थी। प्राय: सभी दरबारी भी नशे में झूम रहे थे। केवल विदेशी पगड़ियों वाले ही होश में दिखाई देते थे।

नृत्य-संगीत चलता रहा।

अचानक यागमल लडखडाता हुआ उठा और नाचने लगा। सभी दरबारियों के मुख से निकला—



“वाह ! वाह ! महाराज, वाह !”

यागमल तालियाँ बजाता नाचता रहा !”

विदेशी पगड़ी वाले एक व्यक्ति ने शराब की सुराही थामने वाली युवती को इशारा किया। उसने दूसरी की तरफ देखा।

दोनों ने आगे बढ़कर यागमल को पकड़ लिया। मिलकर दोनों उसे वापस अपने राज-सिंहासन के पास ले आई। फिर बाँहों का सहारा देकर दोनों ने उसे बिठा दिया। विदेशी पगड़ी वाले ने फिर कुछ इशारा किया। नर्तकियां शराब के प्याले भरकर यागमल को फिर पिलाने लगी। पी-पीकर जब वह बिलकुल धुत हो गया, तो विदेशी पगड़ी वालों का इशारा पाकर वे शराब पिलाने वाली दरबारियों की तरफ बढ़ी। भर-भर प्याले उन्हें देने लगी। दरबारी पी-पीकर झुमने लगे।

नृत्य-संगीत बराबर चलता रहा।

विदेशी पगड़ियों वाले दोनों व्यक्तियों ने एक-दुसरे की तरफ देखा। एक ने अपने कमरबंद से लिपटा हुआ एक कागज जैसा निकाला। वे दोनों यागमल की तरफ बढे। उसके पास पहुंचकर एक ने नम्रता से कहा—

“इस पर हस्ताक्षर कर दीजिये, महाराज !”

“य…य…यह क्या…क्या है ?” यागमल ने लडखडाती हुई जबान से पूछा।

“यह महाबली सम्राट अकबर के साथ आपका संधि-पत्र है। आप हस्ताक्षर कर दीजिये।” दुसरे ने कहा।

“संधि-पत्र !” यागमल ने आँखें खोलते हुए कहा—“इस पर हस्ताक्षर करने से क्या होगा ?”

“आप सम्राट के मित्र बन जायेंगे। फिर आपको किसी का डर नहीं रहेगा। कोई चिंता नहीं रहेगी। आप दिल्ली या आगरा के राजमहलों में मौज से रह सकेंगे।” पहले विदेशी पगड़ी वाले ने कहा—“बस, आप अब जल्दी से हस्ताक्षर कर दीजिये।”

“अच्छा !” यागमल ने एक हिचकी लेते हुए फिर कहा– ” तब मुझे प्रताप का डर भी नहीं रहेगा न…. हाँ ! मै उससे बहुत डरता हूँ …..यहाँ के लोग …. मुझे अपना राजा नहीं मानते…. वे प्रताप -प्रताप चिल्लाते रहते है…. तो मेरा राज तो मेरा ही रहेगा न–क्यों ?” यागमल ने एक और हिचकी ली।

“आपको महाबली सम्राट अकबर सारे मेवाड़ का राणा बना देंगे। चित्तौडगढ़ का प्रदेश भी आपको दे दिया जायेगा !” दुसरे ने कागज आगे बढ़ाते हुए कहा–“जल्दी हस्ताक्षर कर दीजिये।”

“अच्छा !” यागमल ने आँखें फाड़कर देखते हुए फिर कहा—“चित्तौडगढ़ का राणा भी मै बन जाऊंगा….भाई वाह ! और …. और वह है न एक सागरसिंह….. अरे राणा उदयसिंह का बेटा…. मेरा बड़ा भाई, उसका क्या होगा ?”

“जो आपका होने जा रहा है।” पहले ने तत्काल सम्हल कर, बात बदलते हुए कहा—“वह भी आपका सेवक बनकर रहेगा, महाराज !”

“अच्छा-अच्छा …आ !” अपनी आवाज को खीचते हुए यागमल बोला—-“ये परियां… यह सोमरस… इन सबका क्या होगा ?”

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