महाराणा प्रताप भाग-16
प्रताप आगे बढे । जंगली सूअर के पीछे थोड़ी दूर भागे । फिर उन्होंने अपना भाला साधकर सूअर को दे मारा । भाला सूअर की कमर में धंसकर शरीर के उस पार निकल गया ।
इधर प्रताप का भाला सूअर को लगा, ठीक उसी समय विपरीत दिशा से भी आकर एक भाला सूअर के पेट में धंस गया । उस दुसरे भाले के लगने में बस एक ही क्षण की देरी लगी । प्रताप ने चिल्लाकर कहा —
“वह मारा ।”
“वह मारा सूअर !” दूसरी ओर से भी आवाज सुनाई दी ।
सूअर एक बार जोर से चिंघाडा । फिर लडखडाया और एक चक्कर खाकर गिर पड़ा ।
तभी हांफते हुए एक तरफ से प्रताप ने और दूसरी तरफ से शक्तिसिंह ने प्रवेश किया ।
“यह सूअर मेरे भाले से गिरा है ।” शक्तिसिंह ने हांफते हुए कहा ।
“तुम भूल करते हो, शक्ति !” प्रताप ने सहज भाव से कहा । “पहले मेरा भाला इसे लगा । हाँ, मेरा भाला लगने के एक ही क्षण बाद एक और भाला भी इसे लगा । वह शायद तुम्हारा ही था ।”
“नहीं, पहले मेरा भाला लगा !” शक्तिसिंह ने अड़ते हुए कहा –“उसके एक क्षण बाद आपका भाला इसे लगा ।”
“चलो !” प्रताप ने समस्या सुलझाते हुए कहा –“यों मान लेते है कि हम दोनों के भाले एक साथ ही इसे लगे । हम दोनों ने मिलकर इस सूअर का वध किया है ।”
“नहीं !” शक्तिसिंह ने अपनी बात पर बल देते हुए कहा –“इसे मेरा ही भाला आकर लगा है ।”
“नहीं, कुंवर साहब !” राठौर तेजसिंह ने पास आते हुए नम्रता से कहा –“पहले महाराणा का भाला ही लगा । एक क्षण बाद ही भाले का वार हुआ ।”
“तुम कौन हो बीच में बोलने वाले ?” शक्तिसिंह ने गुस्से में गरजकर कहा ।
“मातृभूमि मेवाड़ और सिसोदिया वंश का साधारण सेवक राठौर तेजसिंह हूँ मैं ।” राठौर तेजसिंह ने नम्रता किन्तु द्रढ़ता से कहा –“राठौर झूठ बोलना नहीं जानता । दबाव या अन्याय के सामने झुकना भी नहीं जानता । जो सत्य देखा है उसी को प्रगट कर रहा हूँ, कुंवर साहब !”
“बड़ी अकड है अपने सत्य-भाषण पर !” शक्तिसिंह ने तलवार खिंच ली । फिर कहा –“शक्तिसिंह भी अपने द्वारा कहे गए सत्य की रक्षा करना जानता है ।”
“यह क्या शक्ति भैया ?” प्रताप ने शांत और स्नेह भरे स्वर में शक्तिसिंह को समझाने का प्रयत्न करते हुए कहा –“यह तो हम लोगों का आपसी भाईचारे का खेल है । खेल में उत्तेजित नहीं होना चाहिए, बल्कि हर बात को खेल-भावना से ही लेना चाहिए ।”
“तो फिर आपको मानना होगा कि यह सूअर मेरे ही भाले के वार से मारा गया है ।” शक्तिसिंह ने कहा । शक्तिसिंह के हाथ सुबह से एक भी शिकार नहीं लगा था, इस कारण वह कुछ खीझ से भर रहा था । फिर बोला –“तो आप स्वीकार करते है कि आपका भाला बाद में लगा ?”
“असत्य को कैसे स्वीकार किया जा सकता है, शक्ति भैया !” प्रताप ने समझाते हुए कहा –“आओ ! हम लोग मिलकर और शिकार खोजते हैं । अभी दिन काफ़ी बाकी है । फिर निर्णय हो जायेगा ।”
“नहीं !” शक्तिसिंह ने कड़कते हुए कहा –“या तो आपको मेरी बात स्वीकार करनी पड़ेगी, या फिर हम लोगों को तलवार से इस बात का निर्णय करना होगा ।”
“तलवार से !” महाराणा प्रताप ने चौंककर कहा –“क्या कह रहे हो शक्ति भैया ।”
One Response
Not bad at all fellas and galsal. Thanks.