महाराणा-प्रताप-भाग-2

महाराणा-प्रताप-भाग-2

सभी ने अपने-अपने कपडे पहन लिए थे| तलवारें और भाले भी संभाल लिए थे| इन आठ-दस बालकों में चार तो थे राणा उदयसिंह के बेटे | उनमे प्रताप सबसे बड़ा बेटा था | उसका जन्म ६ मई, सन १५४० में हुआ था | उसकी माता का नाम था महारानी जयजयवंती महारानी जयजयवंती शोन गढ़ के सरदार की बेटी थी |दूसरा था कुंवर शक्तिसिंह ! इफ प्रताप का सगा छोटा भाई था | तीसरा कुंवर सागरसिंह प्रताप का छोटा सौतेला भाई था | उसकी आयु प्रताप के सामान ही थी | सबसे छोटा था — कुंवर यागमल ! वह राणा उदयसिंह की सबसे छोटी रानी भटियानी का बेटा था |
इनके अतिरिक्त झाला वंशीय सरदार का बेटा मन्नाजी प्रताप का सहपाठी, प्रिय मित्र था| बाकी बच्चे भी अन्य सामंतों और सरदारों के थे | सभी राजगुरु से एक साथ शास्त्र और शास्त्र की शिक्षा ले रहे थे | राणा उदयसिंह अपनी छोटी रानी भटियानी को बहुत मानते थे | अत: सभी बेटों में उन्हें रानी भटियानी का बेटा यागमल ही अधिक प्रिय था | पर मेवाड़ के सारे सामंत और सरदार प्रताप को ही अधिक चाहते थे ; क्योंकि वह सब प्रकार से योग्य था |
राजगुरु कि आज्ञा पाकर सभी अपने-अपने घोड़ों पर सवार हो गए| राजगुरु अपने घोड़े कि बाग पकड़कर निचे ही खड़े रहे| उन्होंने सामने वाले पहाड़ी टीले कि ओर इशारा करते हुए कहा — “हाँ बच्चों ! वह सामने वाला टीला देख रहे हो न ! अब देखना यह है कि तुममे से उस टीले को छूकर सबसे पहले कौन यहाँ तक वापस आता है| ध्यान रहे, रास्ते में झाड़ियाँ है | इन झाड़ियों में एक – दो नाले भी है, कुछ खंदकें ओर खाइयाँ भी है | उस टीले कि मिट्टी लेकर वापस आना है | सब तैयार ?”



“हाँ गुरुदेव !” सभी ने एक पंक्ति में खड़े होते हुए कहा |
“मै तो नहीं जा सकता, गुरुदेव !” कुंवर यागमल ने एक ओर हटते हुए कहा |
“अच्छा !” राजगुरु मुस्कराए | उन्होंने गहरी नजरों से कुंवर यागमल के सुकुमार चहरे कि तरफ देखा | उस पर अन्य कुमारों जैसा तेज नहीं था | विलास कि भावना झलक रही थी ! वह फिर बोले— “खैर, कुंवर यागमल यही रहेगा !”
उनके ‘एक-दो-तीन’ कहते ही बाकी सबके घोड़े तेजी से भागने लगे| देखते ही देखते प्रताप का घोडा ‘चेतक’ सबसे आगे निकल गया | झाला कुंवर मन्नाजी उसके पीछे था | कुंवर शक्तिसिंह ओर सागरसिंह उसके पीछे | बाद में अन्य बालक | प्रताप टीले पर पहुँच गया | सागरसिंह का घोडा खाई को पर करते समय लुढ़क गया | वह गिर पड़ा | जब तक वह संभलकर फिर घोड़े पर सवार हुआ , तब तक प्रताप वापस लौट रहा था| देखते ही देखते सभी वापस लौट आये | सागरसिंह सबसे बाद में पहुंचा और सिर झुकाकर खड़ा हो गया |
“अब तुम लोगों के भालों कि परीक्षा होगी |” राजगुरु ने मुस्कुराते हुए कहा —“वह सामने बहुत सरे पेड़ दिखाई दे रहे है| उनके तनों पर वार करना होगा | देखना है कि किसके भाले के वार से पेड़ काटकर गिर पड़ता है |”
“जो आज्ञा !”
सभी अपने भाले ताने पेड़ों की तरफ बढे | कुंवर यागमल अब भी चुपचाप खड़ा रहा | बाकियों ने पेड़ों पर वार किया| केवल एक पेड़ का ऊपर वाला भाग ताने से कटकर गिरा| उस पर प्रताप ने वार किया था | बाकी सभी के भाले पेड़ों के तनों में केवल धंसकर रह गए | वे लोग अपने भाले खींचकर निकालने की स्वर में कहा ! प्रताप ने आगे बढ़कर कुंवर सागरसिंह का भाला खींचकर निकाल दिया और बोला —
“यह लो, सागर भैया !”
“तुम कौन होते हो मेरे भाले को छूने वाले ?” सागरसिंह ने गुस्से से कड़क कर कहा|
“मै ? प्रताप ! तुम्हारा भाई ! और कौन ? प्रताप ने आश्चर्य और स्नेहभरे स्वर में कहा |
“भाई ! हूँ: !” उपेक्षा के कहकर सागरसिंह एक तरफ हट गया|
तब तक सभी अपने-अपने भाले निकालकर वापस आ गए थे | शक्तिसिंह का चेहरा झेंप रहा था | अन्य सभी अपने में खुश थे |
“हो चुकी परीक्षा !” राजगुरु ने कहा —“तुम सब वीर हो! देश के भविष्य कि आशा हो !” और फिर वे प्रताप की ओर मुड़ते हुए बोले –“और तुम प्रताप बेटे! तुम्हारे जैसा वीर शिष्य पाकर मुझे अपनी शिक्षा पर गर्व है ! तुम मेवाड़ के ही नहीं, सारे देश के गौरव हो !”
“हुं ! गौरव !” सागरसिंह ने होठों में ही बुदबुदाकर कहा | उसकी बात किसी को भी सुनाई न दी |
“तो अब चला जाये |” गुरुदेव ने कहा|
सभीने घोड़ों को एड लगा दी | उनके घोड़े सरपट दौड़ने लगे | कुछ देर बाद वे लोग उदयपुर के राजमहलों के पास जा पहुंचे| बूढ़े राणा उदयसिंह उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे | सभी ने उन्हें प्रणाम किया | राजगुरु ने आज भी शिक्षा के सम्बन्ध में बताया और कहा —
“बड़े कुंवर प्रताप की शक्तियों का अदभुत विकास हो रहा है, महाराणा !”
“अच्छा अच्छा !” कहते हुए राणा उदयसिंह छोटे कुंवर यागमल के कंधे पर हाथ रखे महल में चले गए |
बाकी सब भी चले गए|
चकित-सा प्रताप राजगुरु की तरफ देखता रह गया|उन की आँखों में स्नेह और आशीर्वाद का भाव प्रगट हो रहा था|

Tags:

One Response

  1. Mitesh says:

    I feel saifsited after reading that one.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *