महाराणा प्रताप भाग-4

महाराणा प्रताप भाग-4

“सिसोदिया वंश की लाज अब तुम्हारे ही हाथ में है, प्रताप ! तुम्हारे पिता ने अपनी विलासिता के कारण जो मान-सम्मान खो दिया है, उसे तुम्हे ही लौटाना है, प्रताप ! मेवाड़ और पुरे राजस्थान के उस गौरव को तुम्हे ही बचाना है, जो कुछ कुल-कलंकी राजपूतों ने विदेशियों के हाथों अपनी बहु-बेटियां सौंपकर मिटटी में मिला दिया है | पर याद रखो, प्रताप ‘! तुम्हे मानव और मानवता का विरोध नहीं करना है, बल्कि मानव की अन्न्यायपूर्ण नीतियों का विरोध करना है | जो लोग अपने किसी स्वार्थवश दूसरों पर, दूसरों की स्वाधीनता पर उंगली उठाते है, तुम्हारी तलवार उन्ही के विरुद्ध उठनी चाहिए | तभी प्रताप का प्रताप अमर और निष्कलंक हो सकेगा |”
“गुरुदेव !” तलवार को तानकर प्रताप गुरुदेव के सामने एक बार फिर झुक गया |
“प्रताप ! गुरुदेव ! आप लोग कहाँ है ?”
तभी पास वाले वृक्षों के झुरमुट से आवाज सुनाई दी | आवाज के साथ-साथ कुंवर सागरसिंह, शक्तिसिंह तथा कुछ अन्य युवक आते हुए दिखाई दिए |
“हम लोग इधर है |” गुरुदेव ने कहा —“तुम सब लोग यहाँ आ जाओ |”
सब आ गए |
सबके आ जाने पर गुरुदेव ने सामने दिखाई दे रहे चित्तोडगढ के किले और विजय स्तम्भ की ओर इशारा करते हुए कहा —
“वह सामने चित्तोडगढ का किल है ओर वह उनचन मीनार | जानते हो वह तुम्हारे पूर्वज राणा कुम्भा द्वारा बनाया गया विजय का प्रतिक है | पर आज… उस पर मेवाड़ के शत्रुओं का झंडा लहरा रहा है |”



“आजकल इस पर अकबर का अधिकार है न, गुरुदेव ?” कुंवर शक्तिसिंह ने पूछा |
“अकबर ! महान अकबर | आज उसका अधिकार कहाँ पर नहीं है भला ! ” कुंवर सागरसिंह ने कहा |
” और तुम इस बात पर खुश हो रहे हो शायद !” प्रताप ने सागर सिंह की तरफ देखते हुए कहा | सागरसिंह की लालसाभरी द्रष्टि चित्तोडगढ की ओर लगी थी |
” तो जो बड़ा है, महान है, उसे बहा या महान कह देने में दोष ही क्या है ?” सागरसिंह ने उपेक्षा के कहा |
“पर तुम लोग अपने को छोटा क्यूँ समझते हो, सागर भैया ?” प्रताप ने गर्व से कहा |
“तुम मुझे अपने को बड़ा समझने ही कब देते हो ?” सागरसिंह ने कहा —” दुनिया में दो ही प्रकार के बड़े होते है | एक तो जिनका जन्म हमसे पहले हुआ हो| दुसरे, जिनके पाद शक्ति हो | तुम पहली किस्म के बड़े हो, प्रताप, ओर अकबर दूसरी किस्म का | इसलिए हमें न चाहते हुए भी दोनों बड़ों के सामने सर झुकाना पड़ता है |”
” तुम हारे हुओं के समान क्यूँ बोल रहे हो, कुंवर सागरसिंह ?” गुरुदेव ने पूछा –” राजस्थान के सबसे महान सिसोदिया वंश के राजकुमार के मुख से क्या ये बातें शोभा देती है ?”
सागर एक जंगली बाघ की गर्जना सुनाई दी | वह पाद की झाड़ियों से निकल कर कुंवर सागरसिंह पर झपटना ही चाहता था | एकाएक प्रताप का भाला तन गया | वह बिजली की तेजी से बाघ पर झपटा | उसका तीखा भाला भघ के पेट में आर-पार हो गया| प्रताप ने झटके के साथ भाला खिंच लिया | एक बार तड़पकर बाघ वहीँ ढेर हो गया |
सागरसिंह मारे डर के अभी तक काँप रहा था |
“तुम अभी भी काँप रहे हो, सागर भैया !” शक्तिसिंह ने कहा–“बाघ तो अब मर चुका है |”
“तुम चुप रहो, शक्ति !” सागरसिंह ने सँभालते हुए जैसे गरजकर कहा |
“अच्छा!” राजगुरु ने स्तिथि को समझते हुए फिर कहा —“अब वापस चला जाये |”
सभी लोग अपने घोडों पर सवार हो गए | उनके घोड़े उदयपुर की तरफ तेजी से भागने लगे |
उदयपुर !
नगर को सजाया जा रहा था | चारों तरफ डोंडी पिटी जा रही थी | ढिंढोरा पीटने वाला घोषित कर रहा था —
“कल आवश्यक दरबार होगा | हमारे महाराणा उदयसिंह अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करेंगे | महाराणा का स्वास्थ्य अब पहले से अच्छा है |”
गुरुदेव और राजकुमारों ने इस घोषणा को सुना | सागरसिंह ने ईर्ष्या-भाव से प्रताप की तरफ देखा | शक्तिसिंह की आँखों में भी लालसा का भाव था | पर प्रताप शांत था |

अगले दिन उदयपुर का राज-दरबार खचाखच भरा था| महाराणा उदयसिंह आज कई दिनों के बाद दरबार में आये थे | कुंवर याग्मल उनके साथ ही आया था | बाकी सभी लोग भी अपने-अपने स्थान पर बैठे थे | महाराणा उदयसिंह की ओर से महामंत्री ने घोषणा की —
“महाराणा की इच्छा है कि उनके बाद कुंवर याग्मल को उनका उत्तराधिकारी माना जाये !”
“क्या !” सारी सभा चौंक पड़ी –‘वास्तविक उत्तराधिकारी तो कुंवर प्रतापसिंह है |”
“शांत सरदारगण !” महामंत्री ने फिर कहा –“हमें अपने राणा कि इच्छा का सम्मान करना चाहिए |”
“सम्मान !” राजगुरु ने अपने स्थान पर खड़े होते हुए गंभीर भाव से कहा –“कौन-से सम्मान की बात कह रहे है, महामंत्री ! वह जो विलास-भावना से पीड़ित होकर विवेक शुन्य हो गया है ? यह बात परम्परा, पारिवारिक नियम और शास्त्र के भी विरुद्ध है |”
“हम राजगुरु के मत का समर्थन करते है |” झालौर के राव ने अपने स्थान पर खड़े होते हुए कहा |
“मेवाड़ के पवित्र सिंहासन पर प्रताप जैसे वीर और निष्कलंक राजकुमार का ही अधिकार हो सकता है |” सालुम्बरा के राजा और मेवाड़ के सामंत चंदावत कृष्ण ने कहा |
कई क्षणों तक दरबार में शोर होता रहा | प्राय: सभी इस घोषणा का विरोध कर रहे थे |

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3 Responses

  1. pranav mishra says:

    bhai ye post karke apne mughpar ehsan kiya hai ,bahut dhanyawad apka.
    Jai hind ,vande matram.

  2. Ralf says:

    A perfect reply! Thanks for taking the trlboue.

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