महाराणा प्रताप भाग-19

महाराणा प्रताप भाग-19

” हाँ  सम्राट !” आसपास बैठे राजाओं ने झेंपते हुए कहा ।

“फिर तुम लोग कहाँ-कहाँ गए ?”  अकबर ने अपने दूतों की तरफ देखते हुए पूछा ।

“हम लोग वहाँ  से निकल चित्तौडगढ़ गए ।” एक कहने लगा — “हमने सारी  बातें हुजुर के सेवक राणा सागरसिंह को बता दी । वह डर  गए और पूछने लगे — अब हमारा क्या होगा ? क्योंकि प्रताप अपनी धुन का पक्का है ।”

“वहीं  रहते हुए हमने प्रताप की घोषणा भी सुनी, जहां-पनाह !” दुसरे दूत ने कहा –“जिन्हें मात्रभूमि से प्रेम है, जो स्वाधीनता का महत्व समझते है और हमें अपना राणा मानते है, वे सब मेवाड़वासी कमलमीर के जंगलों और पर्वतों में हमारे पास आ जाये । ऐसा न करने वालों को मात्रभूमि का शत्रु समझा जायेगा ।”

“फिर ? फिर क्या हुआ ?” अकबर की उत्सुकता बढ़ गई थी ।

“उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों के लिए भी कठोर नियमों की घोषणा की है, जहाँपनाह !” दूसरा फिर कहने लगा –“परिवार के सभी सदस्य उनके ही समान झोंपड़ियों में निवास करेंगे, पत्तलों पर रुखा-सुखा  खायेंगे । किसी भी राजकीय सुविधा का उपयोग नहीं करेंगे । जमीन  पर सोयेंगे । दाढ़ी-मूंछ  या सिर  के केश आदि कुछ भी नहीं मुंडवायेगे । यह क्रम तब तक चलता रहेगा, जब तक मेवाड़  का चप्पा-चप्पा स्वाधीन नहीं हो जाता ।”



“विचित्र प्राणी है प्रताप !” अकबर ने फिर कहा –“पर उसकी घोषणा का क्या परिणाम निकला ?”

“घोषणा का परिणाम ?” दुसरे दूत ने बताया –“इससे सारे  मेवाड़  में खलबली-सी मच गई । देशभक्त अपने-अपने घरों से निकलकर कमलमीर के पहाड़ों और जंगलों में इक्कठे होने लगे हैं । किसान हल छोड़कर, बाकी सब लोग भी अपने काम-धन्धे  छोड़कर कमलमीर के प्रदेश में पहुँच चुके हैं, जहाँ-पनाह (सम्राट) !”

“हूँ !” अकबर फिर गम्भीर  हो गया ।

“इतना ही नहीं, जहाँपनाह !” पहले दूत ने फिर कहा –“चितौडगढ़ में रहने वाले राणा सागरसिंह के अनेक विश्वासी सरदार भी चुपके से खिसक चुके है । भीलों की अनेक टोलियाँ भी राणा प्रताप की सहायता के लिए इकटठी  हो रही है । मेवाड़  की हरी-भरी  और गुलज़ार  भूमि उजडती जा रही है । किसी को खेती-बाड़ी या कुछ भी करने की आज्ञा  नहीं है । वहां पूर्णतया युद्ध जैसी स्थिति है । शस्त्रास्त्रों का रात -दिन निर्माण हो रहा है, तलवारों और भालों को सान  पर चढ़ाया जा रहा है । ये सारी  कार्यवाहियां हुजुर जहाँपनाह की नाकेबंदी करने के लिए ही की जा रही है ।”

“नहीं ! यह सब अब और अधिक सहन नहीं किया जा सकता ।” अकबर ने एकाएक गम्भीर  स्वर में पुकारा –“अरे कोई है यहाँ पर ?”

“जहाँपनाह !” एक दरबान ने सामने आकर झुककर सलाम करते हुए कहा ।

“अभी जाकर रजा साहब मानसिंह को बुलाकर लाओ ! अभी ! इसी समय !” अकबर ने आदेश दिया ।

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One Response

  1. Maria says:

    Wow, that’s a really clever way of thninkig about it!

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