महाराणा प्रताप भाग-20

महाराणा प्रताप भाग-20

“जो आज्ञा जहाँपनाह !” दरबान ने कहा और सलाम करके चला गया ।

“और कोई बात ?” अकबर ने फिर पूछा ।

“राणा  प्रताप ने कमलमीर, गोगुन्दा, देवीर, भीम सरोवर दुर्ग और सुर्यमहल जैसे पुराने दुर्गों की मरम्मत भी करवा  ली है । इन्हें जागीर के रूप में अपने विश्वासी सैनिकों को दे दिया है । चारों  तरफ युद्ध की तैयारियाँ  हो रही है । राणा रात-दिन उनके विश्वासी सैनिकों के साथ योजनायें बनाते रहते है । उनके अनुसार कार्य भी करने लगे है।”

“कार्य भी करने लगे है!” अकबर ने आश्चर्य से पूछा –“किस प्रकार के कार्य करने लगे है?”

“उन्होंने छापामार ढंग की लड़ाई भी आरम्भ कर दी है, जहाँपनाह !” पहले दूत ने कहा – “हमारी सेनाओं की अनेक टुकड़ियों के साथ उनकी मुठभेड़ हो चुकी है । उन्हें या तो लूट लिया गया, या फिर समाप्त कर दिया गया है । कईयों को तो प्रताप जान-बुझकर छोड़ देता है, ताकि उनकी कार्यवाहियों की सूचना आप तक पहुंचा सके। वह स्पष्ट कहता है कि अपने आका अकबर से जाकर कह दो, वह मेवाड़  को पूर्णतया खाली कर दे। नहीं तो हम न खुद चैन से बैठेंगे और न ही उसे ही चैन से बैठने देंगे ।”

“राणा प्रताप की हिम्मत की तारीफ करनी ही पड़ती है!” अकबर ने आसपास बैठे राजाओं की तरफ देखकर कहा।



“सो तो है ही, सम्राट!” सभी ने एक साथ कहा।

“और एक आप लोग है ….” कहते-कहते अकबर रुक गया। वह कहना चाहता था की आप लोग (राजा) अपना सारा मान-सम्मान खोकर यहाँ ग़ुलामी  और खुशामद का जीवन बिता रहे है । पर राजाओं को झेंपते हुए देख अकबर ने बात बदल दी । फिर कहा –“हम मेवाड़  की हरी-भरी भूमि को उजाड़ना नहीं चाहते । क्या आप लोगों में से कोई जाकर प्रताप को  समझा नहीं सकता, कि  वह हमारा मित्र बनकर रहे, दुश्मन नहीं ?”

“हममें से किसी से भी बस की यह बात नहीं है, जहाँपनाह !” मारवाड़ के राजा ने कहा ।

“हाँ, जहाँपनाह !” बूंदी के राजा  बोले –“आज किसमे शक्ति है कि  वह सम्राट अकबर का मुकाबला कर सके ! फिर यह शक्ति भी हममें नहीं है कि  हम लोग प्रताप के तेज का सामना कर सकें । उसके सामने हम कौनसा मुँह  लेकर जा सकते है ?”

“हाँ, सम्राट !” बाकियों ने भी हाँ-हाँ किया ।

“हूँ !” सम्राट अकबर गम्भीर  हो गए ।

तभी मानसिंह ने प्रवेश किया । उनके साथ मेवाड़  के राजकुमार शक्तिसिंह भी थे । मानसिंह ने झुककर सम्राट का अभिवादन किया ।

“आओ, राजा साहब !” अकबर ने मानसिंह की तरफ अभिवादन का उत्तर देते हुए कहा । फिर शक्तिसिंह की तरफ देखा ।

“यह कुंवर शक्तिसिंह है, राणा प्रताप के छोटे भाई ।” मानसिंह ने परिचय करवाते हुए कहा –“अपने बड़े भाई प्रताप से झगड़कर हुजुर की शरण में आये है ।”

“मेवाड़  का राजकुमार शक्तिसिंह भारत सम्राट महाबली अकबर का अभिवादन करता है ।”

“स्वागत हो, कुंवर साहब !” अकबर ने कहा –“आपसे मिलकर हमें बहुत ख़ुशी हुई । आपने अपने बड़े भाई को समझाया नहीं कि मुग़ल साम्राज्य से लौहा  लेना कोई बच्चों का खेल नहीं ?”

“प्रताप बड़ा अभिमानी और जिद्दी है, सम्राट ! वह जहरीला काला  नाग बनकर सभी की और देखकर फुंकारता रहा है ।” कुंवर शक्तिसिंह ने क्रोध और घृणा की दृष्टि से कहा —“जब तक इस नाग का कुचला जायगा, वह यों ही फुंकारता रहेगा । मैं सम्राट की सेवा में इसलिए उपस्थित हुआ हूँ कि  इस नाग का फन  कुचलने के लिए मेरी सहायता की जाये ।”

“हूँ !” अकबर गम्भीर  हो गया । उसने एक बार मानसिंह की तरफ देखा, फिर बाकी  राजाओं की तरफ देखते हुए कहा –“पर इस बात का प्रमाण क्या है कि  आप इसी प्रयोजन से आये है ? हमें धोका देना नहीं चाहते ?”

“मेरे और प्रताप के विरोध को सारा मेवाड़  जनता है, सम्राट !” शक्तिसिंह ने कहा ।

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One Response

  1. Rehman says:

    How neat! Is it really this simelp? You make it look easy.

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