महाराणा प्रताप भाग-21
“सारा मेवाड़, बल्कि सारा भारत यह भी तो जानता है कि प्रताप ने आपको अपने भाई के समान नहीं, बल्कि अपने बेटे अमरसिंह के समान पला-पोसा और बड़ा किया है । अमरसिंह से भी बढ़कर आपको अपना स्नेह दिया है । क्या आप अपने उसी पिता समान भाई का विरोध करेंगे ?” अकबर ने गंभीरता से कहा ।
“वह सब मैं भूल चूका हूँ, सम्राट !” शक्तिसिंह ने क्रोध और घृणा से तमतमाते हुए कहा –“अहेरिया के उत्सव् पर उसने एक मामूली सरदार के सामने मेरा जो अपमान किया है, उसे मैं कभी नहीं भूल सकता, सम्राट । फिर मेवाड़ के राज्य से मुझे निर्वासित करने वाला वह कौन होता है ? मैं भी तो राणा उदयसिंह का ही बेटा हूँ !”
“देखिये, कुँवर साहब !” अकबर ने गंभीरता से फिर कहा –“क्रोध और जोश में बनाये गए विचार न तो ठीक ही होते है और न पक्के ही । आप एक राजनितिक समझौता करना चाहते है । ऐसा न हो, बाद में आपको किसी प्रकार का पश्चाताप हो ।”
“मैं राजनीती को अच्छी प्रकार समझता हूँ, सम्राट !” शक्तिसिंह ने उसी जोश में कहा ।
आसपास बैठे हुए राजा आश्चर्य, घृणा और विवशता के भाव से शक्तिसिंह की तरफ देख रहे थे । स्वयं राजा मानसिंह के चेहरे से भी प्रगट हो रहा था कि शक्तिसिंह का व्यवहार उचित नहीं है। हालांकि मानसिंह के साथ ही शक्तिसिंह यहाँ पहुंचा था, पर यहाँ आने से पहले तक शक्तिसिंह ने मानसिंह को कुछ भी बताया न था । मन ही मन मानसिंह भी राणा प्रताप का प्रशंसक था ।
“आपका क्या ख्याल है, राजा साहब ?” सहसा मानसिंह की तरफ देखते हुए अकबर ने प्रश्न किया ।
“आप देख लीजिए, सम्राट !” मानसिंह ने उत्तर दिया ।
“हूँ !” अकबर गम्भीर हो गया । दो-चार क्षण बाद शक्तिसिंह की तरफ देखते हुए पूछा — “आप हमारी सहायता किस प्रकार से कर सकेंगे, कुँवर साहब ?”
“इस तलवार से !” शक्तिसिंह ने कमर में लटक रही तलवार निकालते हुए कहा — “मैं मेवाड़ की चप्पा-चप्पा भूमि से परिचित हूँ । मैं आपकी सेनाओं के आगे-आगे यह तलवार लेकर चलूंगा । मेरा क्रोध तलवार की इस नोक से बरस-बरसकर सारे मेवाड़ को तहस-नहस कर देगा । यदि प्रताप ने कहीं विरोध करने का साहस किया, तो मेरी तलवार उसकी गर्दन पर बिजली बनकर गिरेगी, सम्राट !”
कुछ देर सन्नाटा छाया रहा ।
“आपसे मैं एकान्त में फिर बातचीत करूँगा, कुंवर साहब । आप शाही मेहमानखाने में ठहरिये ।” फिर अकबर ने मानसिंह की तरफ देखकर कहा –“राजा साहब, कुंवर शक्तिसिंह की व्यवस्था कर आप जल्दी वापस आइये ।”
“जो आज्ञा , सम्राट !” कहकर मानसिंह कुंवर शक्तिसिंह को साथ लेकर चला गया । कुछ क्षण मौन बीत गए । अकबर ने गहरी नजरों से आसपास बैठे राजाओं की तरफ देखा और कहा —
“आप लोग भी अब जाकर आराम कीजिये !” सभी लोग उठकर चले गए । अकबर सिर झुकाए जाने क्या सोचने लगे ।
“जय हो, महाबली सम्राट की !” तभी एक साथ जय-जयकार करते हुए मानसिंह के पिता राजा भगवानदास, राजा टोडरमल ने अपने कुछ सहचरों के साथ प्रवेश किया ।
“आइये !” अकबर ने सिर उठाया –“मैं आप लोगों को ही याद कर रहा था । बैठिये !” सभी बैठ गए ।
“महाबली कुछ खोये-खोये नज़र आ रहे है !” राजा टोडरमल ने कहा ।
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