“मै –मैं शर्मिन्दा हूँ, प्रताप ! मैं यह बिलकुल नहीं चाहता था …!” शक्तिसिंह ने गिडगिडाते हुए कहा — “मैं तो तुम्हारा घमंड तोडना चाहता था, पर….पर हमें स्वाभिमान का पाठ पढ़ाने वाला मेरे हांथों से टूट गया– ओह !” शक्तिसिंह की आँखों में भी आंसू भर आये । कुछ क्षण उदासी में सरक गए…
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“हाँ ! तलवार से !” शक्तिसिंह ने गंभीर बनते हुए कहा –“आपको अपनी शक्ति पर शायद अधिक गर्व हो गया है । आप समझते हैं कि बाप्पा रावल का तेजस्वी खून केवल आपकी रगों में ही है । उठाइए तलवार !””शक्ति भैया !” प्रताप ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा —“बाप्पा रावल के तेजस्वी खून का…
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प्रताप आगे बढे । जंगली सूअर के पीछे थोड़ी दूर भागे । फिर उन्होंने अपना भाला साधकर सूअर को दे मारा । भाला सूअर की कमर में धंसकर शरीर के उस पार निकल गया । इधर प्रताप का भाला सूअर को लगा, ठीक उसी समय विपरीत दिशा से भी आकर एक भाला सूअर के पेट…
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” हाँ, महाराणा !” महामंत्री ने कहा –“शिकार के लिए अनेक मचान तैयार है । हांक लगाने वाले जंगल मैं चारों ओर फ़ैल चुके हैं ।” फिर उन्होंने सामने वाले टीले की तरफ इशारा करते हुए कहा — “वह नगाड़ा वहां रखा है, उस पर चोट पड़ते ही जंगल में हांक लगनी आरम्भ हो जाएगी…
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कुम्भलगढ़ के पास का एक भयानक जंगल । “हम राजधानी से काफी दूर निकल आये हैं, महाराणा !” जंगल में एक स्थान पर रुकते हुए झाला सरदार मन्ना जी ने कहा । “राजधानी !” प्रताप ने आश्चर्य से कहा – “हमारी राजधानी कैसी, भाई ! मेवाड़ की परम्परागत राजधानी तो चित्तौडगढ़ में थी । उस…
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“द्रढ़ इरादे वाले लोगों और राष्ट्रों को कोई बड़ी से बड़ी शक्ति भी पराधीन नहीं रख सकती |” राजगुरु ने कहा — “इस पवित्र ललकार को सुनने के लिए मेरे कान जाने कब से व्याकुल हो रहे थे, प्रताप!””शत्रुओं द्वारा मात्रभूमि के किये गए अपमान का बदला गिन-गिनकर तलवार की नोक से लिए जायेगा |…
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“कुंवर यागमल प्रायश्चित कर रहे है, सो ठीक है।” चंदावत कृष्ण सिंह बोले—“पर इस बात को वे भी स्वीकार करेंगे, कि वे प्रजा और सामंतों का विश्वास लेकर नहीं चल सकते; क्योंकि अपने छोटे-से शासन – काल में उन्होंने उदयपुर जैसे महत्वपूर्ण स्थान को भी खो दिया है। चित्तौडगढ़ पर सागर सिंह का अधिकार और…
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“अकबर अब इस पवित्र भूमि पर कभी कदम नहीं रख सकेगा…धिक्कार है तुम्हे !” महामंत्री ने कहा और फिर उन विदेशियों की तरफ देखकर अपने सैनिकों को इशारा करते हुए कहा—“गिरफ्तार कर लो इन्हें !” दो सैनिकों ने आगे बढ़कर विदेशियों, अकबर के उन दूतों को बंदी बना लिया। “डूब मरने की बात है !”…
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“सब कुछ आपका रहेगा।” दुसरे विदेशी ने कहा। “तब….तब जल्दी लाओ….लाओ, कहाँ करने है हस्ताक्षर ? तब तो जहाँ मर्जी हो और जितने चाहो, हस्ताक्षर करवा लो।” दोनों विदेशियों ने वह संधि-पत्र जैसा यागमल के सामने फैला दिया। एक ने कलम भी हाथ में थमा दी और कहा-“यहाँ हस्ताक्षर कर दीजिये!” लड़खड़ाते हाथों से कलम…
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गोगुन्दा में यागमल का राज-दरबार ! राणाओं की पगड़ी पहने और तलवार लटकाए यागमल राज-सिंहासन पर बैठा था। उसके कुछ खुशामदी और विलासी मित्र तथा दरबारी भी वहां उपस्थित थे। एक-दो विदेशी पगड़ियाँ भी नजर आ रही थी । विदेशी पगड़ीधारी व्यक्ति शायद अकबर के दूत थे, जो यागमल को अपने पक्ष में मिलाने के…
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